गर्मी के मौसम के बाद वर्षा का मौसम आता है।
वर्षा ऋतु में ठंडे-गर्म के कारण शरीर में पित्त का संचय होता रहता है अतः इस ऋतु को अत्यंत सावधानी से काटना ही हितकर है।
बरसात का मौसम गर्मी से व्याकुल ,कमजोर तथा सूखे हुए जगत को फिर से पोषण और बल प्रदान कर देता है लेकिन इसके साथ ही इस ऋतु में बहुत सी व्याधियां भी उत्पन्न हो जाती हैं जिनका हमें ध्यान रखना आवश्यक है जैसे-
वर्षा ऋतु में ना करने योग्य बातें-
- वर्षा ऋतु में , ऋतु प्रभाव से वात का प्रकोप(जैसे- दमा ,गठिया ,शरीर के किसी भाग में दर्द ) रहता है अतः इस ऋतु में वात को बढ़ाने वाला आहार नहीं खाना चाहिए।
- वर्षा ऋतु में विशेषकर सावन-भादों में हरी तथा पत्तेदार सब्जियां नहीं खानी चाहिए क्योंकि बरसात पड़ने से कीटाणुओं , रोगाणुओं की भरमार के साथ ही इनकी तासीर भी बदल जाती है।
- जब आकाश में बादल छाये हुए हों तो जुलाब संबंधी कोई भी पदार्थ न लें।
- वर्षा ऋतु में कभी गर्मी तथा कभी नमी जैसा मौसम रहता है अतः इस ऋतु में पाचन क्रिया अत्यंत मंद पड़ जाती है और पाचन संबंधी समस्याएं भी पैदा हो जाती हैं इसलिए इस ऋतु में हल्का भोजन लें।
- वर्षा ऋतु में शाम का भोजन सूर्यास्त से पहले ही कर लें क्योंकि एक तो इस ऋतु में जठराग्नि मंद रहती है और दूसरा वायु में कीटाणुओं की उपस्थिति भी रहती है ।
- वर्षा काल के प्रारम्भ में गाय भैंस नई-नई पैदा हुई घास खाती हैं अतः सावन मास में दूध नहीं पीना चाहिए।
- वर्षा ऋतु के अंतिम समय में पित्त कुपित होने लगता है और गर्मी बढ़ने लगती है अतः भादो मास में छाछ नहीं पीना चाहिए।
- वर्षा काल में हर किसी स्थान का पानी नहीं पीना चाहिए क्योंकि वर्षा काल में दूषित जल पीने से बहुत से रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
करने योग्य बातें-
- वर्षा ऋतु में पानी को उबालकर सेवन करना चाहिए और बार-बार पानी का सेवन करते रहना चाहिए।
- वर्षा काल में जामुन का फल पाया जाता है अतः जामुन का प्रयोग दोपहर भोजन के बाद अवश्य करें क्योंकि जामुन में लौहतत्व होता है जिसके प्रयोग से शरीर में लौहतत्व की पूर्ति होती है जिससे रक्त बनता है और हीमोग्लोबिन बढ़ता है।

- वर्षा काल का दूसरा मौसमी फल आम है और आम में बहुत से औषधीय गुण पाए जाते हैं अतः आम का प्रयोग अवश्य करें। आम को चूसकर खाना ही उचित रहता है जिससे मुँह की पर्याप्त लार उसमे मिलती है जिससे पाचन क्रिया भी जल्दी ही सम्पन्न हो जाती है।
- वर्षा काल का एक अन्य खाद्य-पदार्थ मक्का का भुट्टा है जिससे ग्लूकोस तथा कार्बोहाइड्रेट की पूर्ति हो जाती है।
- वर्षा काल में मुख्य रूप से प्रतिदिन मूंग की छिलके वाली दाल का प्रयोग अवश्य करें इसके सेवन से इस ऋतु में पेट ठीक रहता है और पेट संबंधी समस्याएं कम होती हैं।
- वर्षा ऋतु में तेल मालिश करने से बहुत सी समस्याओं से बचा जा सकता है। अतः हल्का व्यायाम और तेल मालिश अवश्य करें।
- वर्षा काल में हल्के पदार्थ ,मूंग,खिचड़ी ,सरसों ,भिंडी, तोरई ,लौकी , मेथी आदि का सेवन अच्छा है।
" वर्षा तथा शरद ऋतु के प्रभावों का अध्ययन करते हुए हमारे देश के दो प्रकांड ज्योतिषाचार्यों घाघ और भडडरी ने काल , विवेक , स्वास्थ्य आदि का अध्य्यन करते हुए इन ऋतुओं के बारे में कहा है -
"सावन व्यारी जब-तब कीजै , भादों वाको नाम न लीजै।
कुवार माह के दो पखवारे ,यतन -जतन से काटो प्यारे।
कार्तिक मास का दिया जलाए ,चाहे जितनी बार खाए। "
अर्थात सावन महीने में यदि आवश्यक हो तो कभी -कभार ही रात का भोजन कर लीजिए। परन्तु भादों महीने में भूलकर भी रात्रि भोजन न करें चाहे रात्रि का उपवास ही क्यों न हो जाए। कवार महीने के दोनों पक्ष बहुत ही सावधानी से काट लीजिये इनमें रात्रि भोजन की आवश्यकता न रहे। कार्तिक महीने के पहले 15 दिन भी सावधानी से काट लें। अमावस्या को दीपावली का दिया जलाने के बाद अपनी भूख और पेट की क्षमता के अनुसार कितनी भी बार भोजन कर लेना हानि की न्यूनतम आशंका रहेगी। "
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